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परिचय

संसार के सभी जीवों को स्वाभाविक गुण जन्म से प्राप्त हैं, किन्तु मनुष्य इसका अपवाद है। क्योंकि यह बिना सिखाए चलना भी नहीं सीख पाता। इसीलिए अन्य जीवों की अपेक्षा मनुष्य के शिक्षण की विशिष्ट व्यवस्था सृष्टि के प्रारम्भ से ही परमात्मा ने वेद ज्ञान ऋषियों की आत्मा में प्रकाशित करके की है। वेदों में विविध विधिवाक्य हैं ।आज के युग में भी उनसे महान पथ प्रदर्शन प्राप्त हो सकता है और वह हमारी वर्तमान प्रमुख समस्याओं का हल प्रदान करने में पूर्ण समर्थ हैं। 

वेदों में एक ही बात के लिए अनेक पक्षीय समाधान विद्यमान हैं,जिनका प्रयोग देश, काल, परिस्थिति भेद से करना होता है ।अतः वेद का पथ प्रदर्शन सार्वकालिक है। वेदज्ञान परमात्मकृत होने से यह उसी प्रकार हमारे लिए सदा नये रूप में आता रहता है जैसे प्रतिदिन की उषा,नवीनता एवं सौन्दर्य के साथ नवीन आकर्षक रूप में प्रतिदिन प्रकट होती है। सूर्य चाहे पुराना हो परन्तु उसकी उषा प्रतिदिन नवीन ही होती है।

इसी प्रकार वेदमन्त्र पुराने अर्थात् आदि सृष्टि के होते हुए भी उनसे ज्ञान का प्रकाश नवीन-नवीन रूप में सदा प्रकट होता रहेगा। परमात्मा के द्वारा बनाये गये वैदिक संविधान का अनुकरण जब तक होता रहा तब तक सुख, सौभाग्य, शान्ति, दया, करुणा आदि गुणों के कारण पृथिवी पर स्वर्गीय वातावरण विद्यमान था।

परमात्मा के द्वारा बताया गया वैदिक मार्ग ही सनातन एवं सर्वोत्तम मार्ग है ।इसी मार्ग के अनुसरण से सब मनुष्यों का जीवन सुखमय, शान्तिमय हो सकता है और इसकी सिद्धि केवल वेद प्रचार से ही सम्भव है। अतः वैदिक एवं भारतीय संस्कृति के प्रतीक तथा वेद प्रचार के केन्द्र के रूप में  सत्य सनातन वेद प्रचार न्यास की स्थापना 21 दिसम्बर सन् 2021 को वैदिक विद्वान् आचार्य विश्वव्रत शास्त्री के निर्देशन में की गई।

सत्य सनातन वेद प्रचार न्यास लखनऊ की स्थापना ईश्वर के शुद्ध स्वरूप की पहचान करने, वेद ज्ञान के विस्तार करने, समाज के अंदर व्याप्त को संस्कारों एवं रोगों से मुक्त वातावरण को निर्मित करने, वैदिक शिक्षा हेतु गुरुकुलों की स्थापना करने, विश्व बंधुत्व तथा आस्तिकता की भावना जागृत करने और साथ ही मानव के उत्थान के लिए सामाजिक शैक्षिक नैतिक धार्मिक बौद्धिक जागरूकता उत्पन्न करने तथा उत्तम व आदर्श गुणों की स्थापना करने के उद्देश्य से की गई है।

मानव धर्म- सूत्र दशक

1. सब सत्य विद्या और जो पदार्थ विद्या से जाने जाते हैं उन सब का अदि मूल परमेश्वर है.

2. वेद सब ईश्वर सचिदानंद स्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनन्त, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र और सृष्टिकर्ता है, उसी की उपासना करनी योग्य है

3.सत्य विद्याओं का पुस्तक है. वेद का पढ़ना-पढ़ाना और सुनना-सुनाना सब आर्यों का परम धर्म है.
4.सत्य के ग्रहण करने और असत्य को छोड़ने में सर्वदा उद्यत रहना चाहिए.
5.सब काम धर्मानुसार अर्थात् सत्य और असत्य को विचार करके करने चाहिए.
6.संसार का उपकार करना इस समाज का मुख्य उद्देश्य है, अर्थात् शारीरिक, आत्मिक और सामजिक उन्नति करना
7.सबसे प्रीतिपूर्वक, धर्मानुसार, यथायोग्य बर्तना चाहिए.
8.अविद्या का नाश और विद्या की वृद्धि करनी चाहिए.
9.प्रत्येक को अपनी ही उन्नति से संतुष्ट न रहना चाहिए, किन्तु सबकी उन्नति में अपनी उन्नति समझनी चाहिए.
10.सब मनुष्यों को सामाजिक, सर्व हितकारी नियम पालने में परतन्त्र रहना चाहिए और प्रत्येक हितकारी नियम में सब स्वतन्त्र रहें

सोलह संस्कार

वेदों, स्मृतियों और ग‌ह्यसूत्रादि ग्रन्थों में मनुष्य के इतिहासानुकूल शरीर और आत्मा की शुद्धि के लिए 16 संस्कारों का वर्णन किया गया है ।

भूषणभूत सम्यकीकरण को संस्कार कहते हैं। देवत्वीकरण तथा समाजीकरण के श्रेष्ठ सांचों में मानव को ढाल कर सुसंस्कृत कर देने का नाम भूषणभूत सम्यक् कृति है। अथवा जिससे शरीर मन बुद्धि आत्मा सुसंस्कृत होने से धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष प्राप्त हो सकते हैं तथा जिससे सन्तान योग्य होते हैं उसे संस्कार कहते हैं।

संस्कार के दोषमार्जन, हीनाङ्गपूर्ति तथा अतिशयाधान ये तीन चरण हैं। गर्भाधान से मृत्यु पर्यन्त जीवन सन्धियों, उम्र सन्धियों, ऋतु सन्धियों पर जिन सोलह संस्कारों का वैदिक विधान है उनके नाम निम्न हैं –
इन 16 संस्कारों में 3 गर्भावस्था सम्बन्धित, 9 ब्रह्मचर्यावस्था सम्बन्धित, क्रमशः 1-1 गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा संन्यास सम्बन्धित तथा अन्तिम संस्कार मरणोपरान्त किया जाता है।

1.गर्भाधान संस्कार

2.पुंसवन संस्कार

3.सीमन्तोन्नयन संस्कार

4.जातकर्म संस्कार

5.नामकरण संस्कार

6.निष्क्रमण संस्कार

7.अन्नप्राशन संस्कार

8.चूड़ाकर्म संस्कार

 

9.कर्णवेध संस्कार

10.उपनयन संस्कार

11.वेदारम्भ संस्कार

12.समावर्तन संस्कार

13.विवाह संस्कार

14.वानप्रस्थ संस्कार

15.संन्यास संस्कार

16.अन्त्येष्टि संस्कार

 

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