गुरुकुल अर्थात् आचार्य-कुल सनातन काल से ऐसी प्राचीनतम शिक्षा-पद्धति है जो चरित्र-निर्माण मूलक रही है| गुरुकुल बालक/बालिका में विभिन्न वेद विद्याओं के अध्ययन स्थली के साथ व्यवहारिक ज्ञान और संस्कारों की निर्माण शाला भी होता है| वैदिक संस्कृति और सभ्यता और जीवन शैली को अक्षुण्ण बनाये रखने में आर्ष गुरुकुल जैसी संस्थाएं अहम् भूमिका निभा रही हैं। वैदिक गुरुकुल सनातन, प्राचीन और ऋषि ज्ञान और विज्ञान का अद्भुत अध्ययन केंद्र हैं| गुरुकुल शिक्षा-प्रणाली वेदोक्त है और गुरुकुल में बालक/बालिका गुरु के कुल का अंग बनकर रहता है। बालक/बालिका जन्म देने वाले अपने पिता के छोटे परिवार से हटकर आचार की शिक्षा देने वाले आचार्य के वृहद परिवार का सदस्य बन जाता है और मनुष्य जीवन के उद्देश्य को प्राप्त करने में समर्थ बनता है।
1. गुरुकुल की स्थापना का महत्व**: गुरुकुल एक प्राचीन भारतीय शैक्षिक प्रणाली है जहां शिक्षा और जीवन कौशल दोनों पर ध्यान दिया जाता है। गुरुकुल का शिलान्यास एक महत्वपूर्ण कदम है जो परंपरागत शिक्षा के पुनरुद्धार और आधुनिक शिक्षा के साथ उसके समन्वय को दर्शाता है।
2. संस्कृति और मूल्य-आधारित शिक्षा**: गुरुकुल का शिलान्यास केवल शैक्षिक संस्थान की स्थापना नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक और मूल्य-आधारित शिक्षा को बढ़ावा देने का प्रयास है। यहाँ विद्यार्थी न केवल शैक्षणिक ज्ञान प्राप्त करते हैं, बल्कि वेदों, शास्त्रों, और अन्य धार्मिक ग्रंथों से नैतिकता और संस्कार भी सीखते हैं।
3. समुदाय और सहयोग**: गुरुकुल का शिलान्यास एक सामुदायिक कार्यक्रम होता है जिसमें स्थानीय समुदाय, शिक्षाविद, और धार्मिक नेता शामिल होते हैं। इस कार्यक्रम के दौरान विभिन्न आयोजनों के माध्यम से सामुदायिक सहभागिता और समर्थन की भावना को प्रकट किया जाता है, जो गुरुकुल के सफल संचालन के लिए आवश्यक है।
4. भविष्य के लिए संकल्प**: शिलान्यास एक प्रतीकात्मक आरंभ है जो दर्शाता है कि गुरुकुल में शिक्षा का एक नया युग शुरू हो रहा है। इस अवसर पर, उपस्थित लोग गुरुकुल के सफल संचालन और इसके द्वारा विद्यार्थियों के उज्जवल भविष्य के लिए संकल्प लेते हैं। और सामुहिक सहयोग गुरुकुल के निर्माण और उसके उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आगे के कदम उठाए जाते हैं।