हम सबके लिए यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि विगत कई वर्षों से निरंतर सत्य सनातन वेद प्रचार न्यास वैदिक सिद्धान्तों के प्रचार – प्रसार में लगा हुआ है। हमारे देश में श्रद्धालु जनों की यह मान्यता है कि प्रयाग में दो धाराओं में प्रवाहित होता हुआ सित असित जल गंगा और यमुना के संगम का मनोरम दृश्य उपस्थित करता है किन्तु यहां सरस्वती की धारा लुप्त है, इस कारण त्रिवेणी की अवधारणा अपूर्ण रह जाती है। जहां वैदिक वाङ्मय के मनीषी विद्वान् और विदुषियां एक स्थान पर सम्मिलित होकर वैदिक ज्ञान धारा प्रवाहित करते हैं वही सरस्वती है, और यह नयनाभिराम दृश्य उपस्थित होता है सत्य सनातन वेद प्रचार न्यास के प्रत्येक सत्संग में।
आज जब 21वीं सदी में संपूर्ण विश्व , जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उन्नति कर रहा है विज्ञान अपने चरमोत्कर्ष पर है संसार साधनों से विश्वग्राम की संकल्पना साकार हो रही है वैभव बढ़ रहा है। बड़े-बड़े उद्योगों, भवनों, सड़कों का निर्माण आर्थिक समृद्धि को दर्शाता है। विश्वविद्यालय, महाविद्यालय एवं विद्यालयों का विस्तार शिक्षा के प्रचार -प्रसार का स्पष्ट संकेत है ।शिक्षकों एवं छात्रों की संख्या बढ़ रही है और इसी के साथ बेरोजगार युवकों की सेना भी खड़ी होती जा रही है। एक ओर IIM और IIT से शिक्षा प्राप्त युवक युवतियों को करोड़ों रुपए वेतन देकर बड़ी-बड़ी कम्पनियां सम्मानजनक कार्य प्रदान कर रही हैं वहीं करोड़ों ऐसे भी युवक हैं जिन्हें चार अंको का वेतन भी नहीं प्राप्त हो पा रहा है परिणामतः निराशा, हताशा ,कुण्ठा, अवसाद ने युवा पीढ़ी को ग्रस लिया है ।अभाव का जीवन जीने वाला यह वर्ग अपराध ,हिंसा ,आतंक में लिप्त होकर कुपथगामी बन जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं।
किन्तु सुख और समृद्धि की जिन्दगी जीने वाला देश का धनी वर्ग अथवा उच्च वर्ग भी आज मार्ग भटक रहा है। प्रतिदिन ऐसे मर्मभेदी समाचार सुनने पढ़ने और देखने को मिलते हैं जिन्हें सुनकर और देखकर मर्मान्तक पीड़ा होती है ।भौतिकता की आंधी में मानव अपना मार्ग भूल रहा है बड़े-बड़े पदों पर प्रतिष्ठित महानुभाव गीता के इस वचन को भूलते जा रहे हैं- यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तदेवेतरो जनः अर्थात् बड़े, श्रेष्ठजन जैसा आचरण करते हैं छोटे उन्हीं का अनुगमन करते हैं।
कहां हैं आज वे राष्ट्र के नेता जो तिलक, सुभाष ,सावरकर, लाल बहादुर शास्त्री, दीनदयाल उपाध्याय ,राम मनोहर लोहिया , सरदार पटेल के रूप में देश का मार्गदर्शन करते थे। न जाने कहां खो गए वे शिक्षा शास्त्री जो स्वामी श्रद्धानन्द, रवीन्द्र नाथ टैगोर , मदन मोहन मालवीय, महात्मा हंसराज बनकर राष्ट्र की शिक्षा नीति तैयार करते थे।
सा विद्या या विमुक्तये, माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः , सर्वे भवन्तु सुखिनः,ईशा वास्यमिदं सर्वम् अर्थात् विद्या वह है जो मुक्ति प्रदान करती है, यह भूमि मेरी माता है और मैं इस पृथ्वी का पुत्र हूं । सब सुखी रहें, यह संपूर्ण संसार परमात्मा से व्याप्त है।
ऐसे सुन्दर-सुन्दर, जीवन को सुपथगामी बनने की प्रेरणा देने वाले ,वेद के अमृत वचन सुनाई नहीं देते। जिस देश में घर-घर में प्रातः सायं सम्पन्न होने वाले यज्ञ के धूम से और वैदिक ऋचाओं की मधुर वाणी से पर्यावरण प्रदूषण नाम की कोई समस्या ही नहीं थी , वह यज्ञ कहां चला गया? यह ऐसे यक्ष प्रश्न हैं जो हम सबको सदैव चिन्तित करते हैं। आज संपूर्ण संसार अशांत है। हिंसा ,राग ,द्वेष,दुराचार ,अनाचार ,प्रान्तवाद, भ्रष्टाचार, जातिवाद एवं आतंकवाद के विषधर मानवता को डस रहे हैं । समस्त विश्व को मित्रता, दया, प्रेम, अहिंसा, करुणा का संदेश देने वाली विश्ववारा वैदिक संस्कृति का और कृण्वन्तो विश्वमार्यम् का उद्घोष करने वाली वैदिक संस्कृति का तेज कुछ कम हो रहा है।
हम जंगली थे, असभ्य थे ,हमें पहनना, खाना, पीना ,पढ़ना, लिखना नहीं आता था ,हम अनार्य थे । बाहर से आर्यों ने आकर यहां अपना साम्राज्य स्थापित किया। इस प्रकार का अनर्गल प्रलाप कर इस देश के अमर शहीदों और महापुरूषों पर मिथ्या आरोप लगाने वाले तथाकथित बुद्धिजीवियों ने भारत के स्वर्णिम इतिहास को दूषित कर युवा पीढ़ी में जगने वाले आत्म गौरव एवं राष्ट्र गौरव को नष्ट करने का षड्यंत्र चला रखा है ।जब दुनिया के अन्य देश सभ्यता और संस्कृति के विकास में बहुत पीछे थे, अशिक्षित थे ,धर्म और संस्कृति से बहुत दूर थे ।
तब हम ज्ञान विज्ञान के सर्वोच्च शिखर पर आरूढ़ थे। यहां पुष्पक विमान था जो आकाश ,पृथ्वी एवं जल में शब्द की गति से अधिक तीव्र वेग से चलता था ।यहां परमाणु की व्याख्या करने वाली कणाद जैसे ऋषि थे ,अष्टांग योग के द्वारा कायिक, वाचिक एवं मानसिक दोषों और रोगों को दूर कर ब्रह्मानंद का मार्ग दिखाने वाले पतंजलि जैसे महर्षि थे। चिकित्सा विज्ञान के रहस्यों को खोलकर पूर्ण स्वास्थ्य का मार्ग प्रशस्त करने वाले चरक के समान परम ज्ञानी थे। साहित्य, संगीत ,कला, कौशल में यह देश सबसे आगे था। नाना प्रकार के शस्त्रास्त्र ,वाद्य आदि के सम्बन्ध में सुनकर हमें आश्चर्य होता है ।कोई ऐसी विद्या नहीं थी जो इस देश में फल फूल न रही हो।
इन समस्त उपलब्धियों का मूल था वैदिक ज्ञान। चार वेद, उनके व्याख्यान भूत ब्राह्मण, आरण्यक ,उपनिषदादि ग्रन्थ वेदार्थ अवगमन के लिए साक्षात् कृत धर्मा ऋषियों द्वारा प्रणीत शिक्षा, कल्प,व्याकरण ,निरुक्त, छ्न्द एवं ज्योतिष विषयक हजारों ग्रन्थ महर्षि गौतम, कणाद, कपिल , यास्क,पतंजलि आदि विरचित सांख्य, योग, न्याय ,वेदांत ,मीमांसा आदि ग्रंथ, मनु की मनुस्मृति ।आदिकवि वाल्मीकि का अमर महाकाव्य रामायण ,महर्षि वेदव्यास का महाभारत ,भोज का समराङ्गण सूत्रधार ,वराहमिहिर आदि की कालजयी कृतियां चरक और सुश्रुत ,विष्णु शर्मा का पञ्चतन्त्र तथा महाकवि कालिदास, भारवि, भवभूति, श्रीहर्ष ,माघ आदि की रससिक्त काव्य रचनाएं और इस प्रकार की असंख्य अमर कृतियों का अपार काव्य वैभव हमारे पास है। आज की सारी समस्याओं का समाधान इस अगाध और अनन्त ज्ञान सागर में विद्यमान है। चारों वेद इस अक्षय ज्ञान की गंगोत्री हैं हम वैदिक ज्ञान से दूर होते चले गए समस्याएं बढ़ती गई इसलिए सत्य सनातन वेद प्रचार न्यास ने वेदाध्ययन को सर्वाधिक महत्व प्रदान किया है । महर्षि दयानन्द सरस्वती के वचनानुसार हम मानते हैं कि- वेद सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है। वेद का पढ़ना, पढ़ना और सुनना, सुनना हम सबका परम धर्म है।
हमारे समस्त प्राचीन साहित्य में वेद की महिमा कूट-कूट कर भरी पड़ी है ।वेद मानव मात्र के लिए हैं। वेदों में सार्वकालिक एवं सार्वभौमिक सत्य निहित है । वैदिक ज्ञान में दुनिया की समस्त समस्याओं का समाधान है। इसलिए हमें वेदों की ओर चलना ही होगा। वेदोदधि का मंथन कर प्राप्त होने वाला नवनीत मानव के समस्त कष्टों को दूर कर सकेगा। इस सत्य को ध्यान में रखते हुए हमने सत्य सनातन वेद प्रचार न्यास की स्थापना की है ।
छोटे से बीज में विशाल वट वृक्ष छिपा रहता है। यदि ठीक तरह से बीजारोपण किया जाये तो स्वस्थ और सुदृढ़ पौधा उगेगा और धीरे-धीरे विशाल वृक्ष के रूप में परिणित हो जायेगा जो छाया, पंक्षियों एवं पंथियों को आश्रय तथा सुमधुर फल भी प्रदान करेगा। न्यास का सर्वस्व सबके लिए लाभकारी और कल्याणकारी हो ….
आचार्य विश्वव्रत शास्त्री
संस्थापक
सत्य सनातन वेद प्रचार न्यास